भोपाल: तो क्या मध्य प्रदेश में अब दलित नौजवान को दूल्हा ही नहीं बनना चाहिए? दलित समाज में ये फिक्र उठने लगी है. वजह है लगातार दलितो दूल्हों के साथ हो रही बदसलूकी और उनकी बारात रोकने की घटनाएं. मुरैना के ताज़ा मामले में दलितों की बारात में उन्हे डीजे बजाने से रोक दिया गया. मुद्दा बस इतना था कि बारात सवर्णों के दरवाजे से निकल रही थी.ये पहली बारात नहीं है. मध्य प्रदेश में बुंदेलखंड हो निमाड़ या ग्वालियर- चंबल दलितों को घोड़ी से उतारे जाने से लेकर बारात के साथ बदसलूकी के मामले तेजी से बढ़े हैं... क्या वजह है कि बारातें लौट रही हैं और दूल्हे घोड़ी से उतारे जा रहे हैं? जिस समय समाज में भेदभाव की लकीर मिट जानी चाहिए थी, क्या वजह है कि ये दरार और गहरी होती जा रही है. स्थिति ये है कि शादी की तारीख बाद में निकाली जाती है पहले पुलिस में आवेदन दिया जाता है कि बारात को कस्टडी चाहिए.

डीजे क्यों बजाया इस बात पर पिटे बाराती

राजवीर के भी अरमान थे कि वे अपने बेटे की धूमधाम से शादी करें. किसी पिता के लिए बहुत बड़ा दिन होता है जब उसके बेटे के सिर सेहरा बंधता है. मुरैना के अम्बाह के रहने वाले राजवीर अपने बेटे वेदप्रकाश की बारात लेकर पोरसा गांव पहुंचे थे. लेकिन वे नहीं जानते थे कि जहां से बारात जा रही है वह सवर्ण परिवार का घर है. दूल्हा घोड़ी पर चढ़ा और डीजे बजना शुरू हुआ. बारात जैसे ही एक सवर्ण परिवार के घर के सामने से गुजरी.

नाराज परिवार ने बारातियों की लाठी डंडे से पिटाई शुरू कर दी. इस मामले में पोरसा थाना पुलिस ने दूल्हे के पिता राजवीर सखवार की रिपोर्ट पर चार नामजद आरोपियों तहसीलदार सिंह तोमर, करू सिंह तोमर, छोटू उर्फ आशीष तोमर और मोनू तोमर के खिलाफ मामला दर्ज कर लिया है. एसडीओपी रवी भदौरिया ने बताया कि बारात में डीजे बजाने को लेकर झगड़ा हो गया था. खबर लगते ही पुलिस मौके पर पहुंच गई थी. चार आरोपियों के खिलाफ मामला दर्ज कर लिया है.

पुलिस कस्टडी मे निकालनी पड़ी बारात, ऐसा भी हुआ

आगर मालवा में तो पीड़ित दिनेश ने शादी के पहले ही पुलिस में शिकायत दर्ज कराई थी और कहा कि उनकी दोनो बहनों की बारात रलायती गांव में आएगी. लेकिन उन्हे सवर्णों से धमकियां मिल रही हैं कि घोड़ी पर बारात नहीं निकलेगी. पुलिस में शिकायत से ये हुआ कि थाने से पंद्रह बीस आरक्षक भेजे गए. पुलिस कर्मियों की कस्टडी में बारात पूरे शहर में घूमी. दोनों दलित दूल्हों की ये बारात धूमधाम से निकल पाई तो केवल पुलिस सुरक्षा की वजह से. परिवार ने पहले भीम आर्मी जिलाध्यक्ष को चिट्ठी लिखी और उसके बाद बारात निकल पाई.

मामले जब जब दलित दूल्हे घोड़ी से उतारे गए

छतरपु में एक दूल्हे को केवल इसलिए घोड़ी से उतार दिया गया क्यंकि वह दलित समाज से था. सवर्ण समाज ने उसे रोका. नीमच में कमोबेश यही तस्वीर बनी यहां भी सारसी गांव में दलित दूल्हे को घोड़ी से उतार दिया गया तो पुलिस की कस्टडी में बारात निकालनी पड़ी. एक ऐसा भी मामला आया जिसमें दलित दूल्हे को सवर्णों के डर से हेलमेट पहन कर घोड़ी पर चढ़ना पड़ा. मध्य प्रदेश का तीन महीने का आंकड़ा ये कहता है कि प्रदेश में दलित दूल्हों को घोड़ी से चढ़ने से रोकने की 38 घटनाएं हुई हैं.

अब पहले हमें चिट्ठी देते हैं फिर शादी तय होती है

भीम आर्मी के सदस्य सुनील अस्ते कहते हैं "अब ये स्थिति हो गई है कि मध्य प्रदेश का नीमच, रतलाम, मंदसौर हो मुरैना, भिंड हो या फिर बुंदेलखंड का छतरपुर दलित परिवार पहले हमारे पास आवेदन देते हैं कि मदद चाहिए. फिर हम पुलिस के पास जाते हैं और आवेदन देते हैं. उसके बाद तय होता है कि शादी किस तारीख को करनी है. दूल्हे को घोड़ी पर सिर्फ इसलिए नहीं चढ़ने दिया जाता क्योंकि उनका ये मानना है कि यह राजशाही है."

"हमारे समाज का दूल्हा घोड़ी पर कैसे चढ़ सकता है. इतना नहीं है उज्जैन में तो रविदास जयंती का जुलूस रोक दिया गया. इदौर में एक सरकारी जमीन पर अम्बेडकर जी और रविदास जी की प्रतिमा लगाई गई तो ये कहा गया कि इससे हमारी कॉलोनी के रेट गिर जाएंगे."